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विशेष (29 सितंबर 2017), मुखपृष्ठ संपादकीय परिवार

बापू के प्रति
सुमित्रानंदन पंत

तुम मांसहीन, तुम रक्तहीन,
हे अस्थिशेष ! तुम अस्थिहीन,
तुम शुद्ध-बुद्ध आत्मा केवल,
हे चिर पुराण, हे चिर नवीन !
तुम पूर्ण इकाई जीवन की,
जिसमें असार भव-शून्य लीन;
आधार अमर, होगी जिस पर
भावी की संस्कृति समासीन !

तुम मांस, तुम्ही हो रक्त अस्थि,
- निर्मित जिनसे नवयुग का तन,
तुम धन्य ! तुम्हारा निःस्व त्याग
हो विश्व-भोग का वर साधन।
इस भस्म काम तन की रज से
जग पूर्णकाम नव जग जीवन
बीनेगा सत्य अहिंसा के
ताने-बानों से मानवपन !

सदियों का दैन्य तमिस्र तूम,
धुन तुमने कात प्रकाश सूत,
हे नग्न ! नग्न पशुता ढँक दी
बुन नव संस्कृत मनुजत्व पूत !
जग पीड़ित छूतों से प्रभूत,
छू अमित स्पर्श से, हे अछूत !
तुमने पावन कर, मुक्त किए
मृत संस्कृतियों के विकृत भूत !

सुख-भोग खोजने आते सब,
आए तुम करने सत्य खोज,
जग की मिट्टी के पुतले जन,
तुम आत्मा के, मन के मनोज !
जड़ता, हिंसा, स्पर्धा में भर
चेतना, अहिंसा, नम्र-ओज,
पशुता का पंकज बना दिया
तुमने मानवता का सरोज !

पशु-बल की कारा से जग को
दिखलाई आत्मा की विमुक्ति,
विद्वेष, घृणा से लड़ने को
सिखलाई दुर्जय प्रेम युक्ति;
वर श्रम-प्रसूति से की कृतार्थ
तुमने विचार-परिणीत उक्ति,
विश्वानुरक्त हे अनासक्त !
सर्वस्व-त्याग को बना भुक्ति !

सहयोग सिखा शासित-जन को
शासन का दुर्वह हरा भार,
होकर निरस्त्र, सत्याग्रह से
रोका मिथ्या का बल-प्रहार;
बहु भेद-विग्रहों में खोई
ली जीर्ण जाति क्षय से उबार,
तुमने प्रकाश को कह प्रकाश,
औ अंधकार को अंधकार !

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ग्यारह कहानियाँ
जयशंकर

जयशंकर की कहानियाँ स्मृतियों के बीच जीवन का शिल्प रचती हैं। इनकी कहानियाँ स्मृतियों के शिल्प में बीत गए जीवन को फिर फिर से बाँचती हैं। यहाँ उनकी कुल ग्यारह कहानियाँ - गणित का अध्यापक, अँधेरे, कोई उजली शुरुआत, अर्थ, चेंबर म्यूजिक, आसमानी नीली याद, कोई ऐसी कहानी, इस बारिश में, मृत-कथा, मंजरी, गुजरा हुआ जमाना, गणित का अध्यापक, अँधेरे, कोई उजली शुरुआत, अर्थ, चेंबर म्यूजिक, आसमानी नीली याद, कोई ऐसी कहानी, इस बारिश में, मृत-कथा, मंजरी और गुजरा हुआ जमाना प्रस्तुत की जा रही हैं। सभी संभव अर्थों में यह जयशंकर जी की प्रतिनिधि कहानियाँ कही जा सकती हैं। इन कहानियों को पढ़ते हुए वह बहुत कुछ जो पहले कहीं छूट गया था दोबारा हमारे सामने आ खड़ा होता है। प्रेम और मृत्यु इन कहानियों के केंद्र में हैं और इन दो ध्रुवों के बीच फैला हुआ समूचा जीवन अपने तमाम रंगों के साथ खेल रचता है। कहीं स्मृतियाँ किसी एक बिंदु पर ठहर गई हैं तो कहीं उनका आवेग रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है। हमें भरोसा है कि यह कहानियाँ अपने पाठकों को एक ऐसी दुनिया में ले जानेवाली है जिसका जादू जल्दी उतरनेवाला नहीं है।

विशेष
अखिलेश कुमार दुबे
अर्धकथानक : हिंदी की पहली आत्मकथा

संस्मरण
श्रीकांत दुबे
मैं तुम्हें छू लेना चाहता था, मार्केस!

आलोचना
राहुल सिंह
संवेदनाओं का किस्सागो - शिवमूर्ति

कला
कुमार अनुपम
विदग्ध रंगमय आकाश में एक सलेटी चंद्रमा
(मनोज कचंगल की कला)

बाल साहित्य
कविता
शमशेर बहादुर सिंह
चाँद से थोड़ी सी गप्पें
सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
उठ मेरी बेटी सुबह हो गई
कहानी
कबीर संजय
तरबूज की दुनिया

देशांतर - कविताएँ
मस्सेर येनलिए
बेल्ला अख्मादूलिना

कविताएँ
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संरक्षक
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(कुलपति)

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ISSN 2394-6687

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